Javelin throw-Making waves in India now….why!
Javeline throw= Making waves in India now….why!
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गांव में एकेडमी पर तैयारी बड़े मुकाबलों की
एक सवाल- नीरज चोपड़ा के टोक्यो में शानदार प्रदर्शन से भारत में खेलों को क्या फायदा हुआ? जवाब- पूरे देश में ट्रैक एंड फील्ड स्पोर्ट्स और ख़ास तौर पर जेवलिन थ्रो की लोकप्रियता में क्वांटम जंप इसी की देन है।
पूरे देश में जहां भी स्पोर्ट्स ट्रेनिंग चल रही है- ट्रैक एंड फील्ड में हिस्सा वाले युवा एथलीटों की गिनती एकदम बढ़ी है। जिस जेवलिन थ्रो को कोई भी ग्लेमरस स्पोर्ट नहीं गिनता था- उसमें नीरज चोपड़ा के गोल्ड लाने वाले प्रदर्शन ने हर किसी की रूचि बढ़ा दी है। अब युवा वर्ग सिर्फ क्रिकेटर नहीं, एथलीट बनने के बारे में भी सोचने लगा है। नीरज चोपड़ा के प्रदर्शन ने उन्हें यह विश्वास दिला दिया कि अगर अपने प्रदर्शन में लगातार सुधार करते रहे, तो उम्र के साथ, वह भी शायद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शन कर सकते हैं और देश के लिए मेडल जीत सकते हैं। नीरज चोपड़ा पर जिस तरह से सम्मान और इनाम बरसे हैं- उसे देखकर कोई भी एथलीट बनने के बारे में क्यों नहीं सोचेगा? यही वजह है कि जेवलिन थ्रो की विशेष ट्रेनिंग एकेडमी शुरू हो रही है- जो थीं और उनमें कोई रूचि नहीं लेता था, वे आबाद हो रही हैं। पूरी दुनिया में फिनलैंड को जेवलिन ट्रेनिंग का सबसे बड़ा सेंटर गिना जाता है- विश्वास कीजिए, हरियाणा के छोटे से बनगांव को जेवलिन थ्रो ट्रैनिंग की नर्सरी बनने के लिए ‘छोटा फिनलैंड’ कहा जा रहा है। जो जमीन कभी चिकन फार्म थी- आज जेवलिन थ्रो के एथलीट तैयार कर रही है।
दिल्ली से बनगांव (सड़क रास्ते से) लगभग पांच घंटे दूर है। इस एकेडमी तक पहुँचने में थोड़ा वक्त और लगेगा। इलाका ऐसा कि फतेहाबाद पार करने के बाद तो स्ट्रीट लाइट भी नज़र नहीं आएगी। लगभग 5 हजार लीग रहते हैं यहां। अब कमाल देखिए :
* दिल्ली में जेवलिन नेशनल्स में, बनगांव की लड़कियों ने अंडर-16 में पोडियम पर तीनों फिनिश हासिल कीं- उनमें से, गोल्ड विजेता दीपिका ने अपनी उम्र के वर्ग में नेशनल रिकॉर्ड भी बनाया।
* इन नेशनल्स में बनगांव में रहने वालों ने कुल चार मैडल जीते।
इस जेवलिन थ्रो क्रांति के लिए, इसी गाँव में रहने वाले, 39 साल के फिजीकल एजुकेशन टीचर हनुमान सिंह को जिम्मेदार माना जाता है। पिछले कुछ सालों में उनके ट्रेनी अब तक कम से कम दो दर्जन नेशनल जेवलिन थ्रो मेडल जीत चुके हैं।
गाँव ऐसा कि सबसे करीब स्टेडियम लगभग 70 किमी दूर है। वहां उन्होंने एक रिश्तेदार को अपने काम न आ रहे, चिकन फार्म को एकेडमी में बदलने के लिए तैयार किया- एक खुला शेड, एक छोटा कमरा और ट्रेनिंग के लिए कुछ सामान। कोई फैंसी इक्विपमेंट या जिम या केंटीन नहीं है वहां। वार्मअप से पहले, ट्रेनी शेड में रहने वाली भैंसों को खोलते हैं ताकि वे खेतों में जाएं और जगह खाली करें, उसके बाद वहां की सफाई करो और तब ट्रेनिंग शुरू होती है। लगता ही नहीं कि रात को इसी जगह, सभी भैंस वापस आ जाएंगी।
दीपिका, जिन्होंने 49.31 मीटर (500 ग्राम जेवलिन) के थ्रो के साथ नेशनल में अपना अंडर-16 नेशनल रिकॉर्ड और सुधारा, वे भी ट्रेनिंग सेंटर में पीने के पानी के इंतज़ाम की ड्यूटी देती हैं। कोच हनुमान सिंह कहते हैं- ‘मुझे बहाने पसंद नहीं। मेरे एथलीट यहां ट्रेनिंग लेते हैं और देश के उन टॉप खिलाड़ियों के खिलाफ मुकाबला करते हैं, जिनकी पहुंच बहुत बेहतर स्टेडियमों तक है। हमारे पास बुनियादी जेवलिन है, कोई सिंथेटिक ट्रैक नहीं लेकिन हम बहुत काम करते हैं। हफ्ते के सातों दिन, दिन में दो बार ट्रेनिंग लेते हैं।’
आल इंडिया सिविल सर्विसेज टूर्नामेंट में ब्रॉन्ज़ जीतने वाले हनुमान ने 2010 में अपने गांव में कोचिंग शुरू की थी। समय लगा और 2017 में ज्योति ने जूनियर नेशनल में मीट रिकॉर्ड के साथ अंडर-20 गोल्ड जीता जबकि पूनम रानी ने सीनियर फेड कप, ओपन नेशनल और इंटरस्टेट मीट में सिल्वर जीता। वहां से शुरू हुआ सिलसिला रुका ही नहीं है।
हनुमान की एकेडमी में ट्रेनी बनना आसान नहीं। वे कड़े इम्तहान के बाद ट्रेनी लेते हैं- मेहनत के लिए तैयार और बाल छोटे। बाकियों को वे कहते हैं- घर जाओ और पढ़ाई पर ध्यान दो। उनका आठ साल का बेटा वरुण भी यहीं ट्रेनिंग लेता है। ऐसा नहीं कि वे पढ़ाई के खिलाफ हैं- वे खुद ट्रेनी को कहते हैं कि सुबह पढ़ना और उसके बाद ट्रेनिंग।
ऐसी निचले स्तर काम कर रही एकेडमी ही क्रांति ला सकती हैं। यहां तैयार ट्रेनी की टेलेंट को बड़े मंच पर और निखारा जा सकता है। नीरज चोपड़ा की कामयाबी से पहले, ऐसी एकेडमी की तो कोई चर्चा भी नहीं करता था।
– चरनपाल सिंह सोबती
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