This Javelin throw athlete is awaiting his third Gold Medal….
टोकियो पैरालंपिक : भारत जेवलिन थ्रो के गोल्ड का ‘डबल’ बना सकता है – कैसे?
नीरज चोपड़ा ने तो समर ओलंपिक में जेवलिन थ्रो का गोल्ड जीत लिया पर एक और बड़ा रिकॉर्ड इंतज़ार कर रहा है- टोकियो में भारत जेवलिन थ्रो के गोल्ड का डबल बना सकता है। 24 अगस्त से शुरू पैरालंपिक में देवेंद्र झझरिया, जो अपने तीसरे पैरालंपिक में हिस्सा ले रहे हैं, हैट्रिक के दावेदार हैं। देवेंद्र झाझरिया एफ-46 जेवलिन थ्रो में अपना तीसरा पैरालंपिक गोल्ड (2004 और 2016 के बाद) अगर जीत गए तो ये डबल बनेगा।
कमाल के एथलीट हैं देवेंद्र। उन्होंने 2004 एथेंस पैरालंपिक में 62.15 मीटर का नया वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाते हुए गोल्ड जीता था।इसके 12 साल बाद, 2016 के रियो पैरालंपिक में 63.97 मीटर के थ्रो के साथ अपने ही रिकॉर्ड को और बेहतर करते हुए पैरालंपिक में दो गोल्ड जीतने वाले पहले भारतीय बन गए। इस तरह झाझरिया इतिहास में एकमात्र भारतीय हैं जिन्होंने न सिर्फ ओलंपिक/पैरालंपिक में दो व्यक्तिगत गोल्ड जीते- दोनों बार वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया। उन्हें इस बार भी गोल्ड क्यों जीतना चाहिए- इसकी सबसे बड़ी वजह है उनकी मौजूदा फार्म। पैरालंपिक बर्थ के लिए जुलाई 2021 के नेशनल ट्रायल के दौरान फिर से वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाने वाला प्रदर्शन किया। यहां एफ-46 वर्ग में 65.71 मीटर की दूरी तक जेवलिन फेंका- अगर वे इस फार्म को दोहराते हैं तो गोल्ड पक्का है। दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में इस क्वालिफाइंग इवेंट में 63.97 के अपने पुराने रिकॉर्ड को तोड़ते हुए 65.71 का नया वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाकर पैरालंपिक के लिए क्वालीफाई किया।
भारतीय नज़रिए से रियो ओलंपिक निराशाजनक रहे थे। ओलंपिक खेलों में अब तक की सबसे बड़ी टीम भेजी और सिर्फ 2 मैडल जीते- साक्षी मलिक (कुश्ती, ब्रॉन्ज़) और पीवी सिंधु (बैडमिंटन, सिल्वर) ने कुछ गौरव बचाया था।
इस निराशा में पैरालंपिक को तो सब भूल ही गए।12 साल पहले एथेंस में वर्ल्ड रिकॉर्ड के साथ गोल्ड जीतने वाले देवेंद्र फिर से मैदान में थे। बीच के दो पैरालंपिक में क्या हुआ था- आपको यह जानकार हैरानी होगी कि चूंकि मेजबान देश खुद जेवलिन थ्रो में मैडल के दावेदार नहीं थे तो इसे पैरालंपिक इवेंट कैलेंडर से ही हटा दिया था।अगर देवेंद्र को इन दोनों पैरालंपिक में भी इस इवेंट में हिस्सा लेने का मौका मिलता तो न जाने आज उनका रिकॉर्ड क्या होता?
झाझरिया ने जेवलिन थ्रो को ही क्यों चुना? इसलिए कि वे एक हाथ से जेवलिन थ्रो कर सकते हैं। आज उम्र लगभग 40+ साल पर जोश में कोई कमी नहीं। राजस्थान के चुरू में रहने वाले झाझरिया आठ साल की उम्र में लाइव इलेक्ट्रिक केबल (11 किलो वोल्ट) को छू गए। उस वक़्त तो मान लिया गया था कि मौत हो गई पर बाद में वे होश में आए पर इलाज़ में अपना बायां हाथ खोना पड़ा। हौसला टूट चुका था। स्पोर्ट्स में इसलिए आए कि चलो कुछ तो करें।
14 साल की उम्र में : घर में बनाए भाले के साथ डिस्ट्रिक्ट स्तर की चैंपियनशिप में नंबर 1, बिना ट्रेनिंग के।
1997 : द्रोणाचार्य अवार्डी कोच आरडी सिंह ने झाझरिया की टेलेंट को देखा और सही ट्रेनिंग के लिए प्रेरित किया। उनकी ट्रेनिंग ने सब कुछ बदल दिया।
एथेंस 2004 : अपने पहले पैरालंपिक में, 62.15 मीटर की दूरी के साथ वर्ल्ड रिकॉर्ड।
2013 आईपीसी वर्ल्ड्स : गोल्ड।
2015 आईपीसी वर्ल्डस : सिल्वर।
2017 : खेल रत्न अवार्ड (ये अवार्ड पाने वाले पहले पैरा-एथलीट)। डबल पैरालंपिक गोल्ड विजेता देवेंद्र झाझरिया बताते हैं कि पैरालंपिक से उनकी इवेंट हटाए जाने पर वे इतने निराश थे खेल छोड़ने के कगार पर थे, लेकिन उनकी पत्नी ने ऐसा नहीं करने दिया।2013 में पता चला कि जेवलिन थ्रो रियो पैरालिंपिक में होगा। इसके बाद फिर गांधीनगर में SAI सेंटर में ट्रेनिंग शुरू दी और नतीजा सामने है। उनकी पत्नी मंजू नेशनल स्तर की कबड्डी खिलाड़ी रही हैं। एक नया इतिहास बनने के करीब है।
– चरनपाल सिंह सोबती
|
|