
जिद और जुनून की बदौलत पैरा-साइकलिस्ट तान्या डा गा ने जम्मू-कश्मीर से कन्याकुमारी तक का सफर तय किया 43 दिन में
इन्फिनिटी राइड K2K 2020 प्रोजेक्ट है आदित्य मेहता फाउंडेशन का – लक्ष्य : 45 दिन में जम्मू-कश्मीर से कन्याकुमारी तक साइकिल का सफर। कोविड, मुश्किल रास्ते और बदलता मौसम – इन चुनौती वाले हालात में 30 सदस्य की टीम (इनमें 9 पैरा-साइक्लिस्ट) ने इसे पूरा किया – 3842 किलोमीटर की दूरी तय हुई 43 दिन में। ऐसे हालात,जिनमें घर से बाहर न निकलने की सलाह दी जा रही थी, फाउंडेशन ने ये प्रोजेक्ट शुरू किया इन साइकलिस्ट की हिम्मत की बदौलत। बात यहीं ख़त्म नहीं होती। इनमें से एक पैरा-साइकलिस्ट तान्या डागा भी थीं और उनके लिए तो हर चुनौती और भी बड़ी और मुश्किल।
देश के 36 शहरों की यात्रा के बाद, साइकिल चालकों ने ऐतिहासिक विवेकानंद रॉक मेमोरियल पर इस प्रोजेक्ट को पूरा किया 31 दिसंबर को जहां डिफेंस और सीआरपीएफ के जवानों ने उनका स्वागत किया।ये इन्फिनिटी राइड प्रोजेक्ट टीम 19 नवंबर को श्रीनगर से रवाना हुई और रास्ते में पैरा स्पोर्टस के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए कई एनजीओ और विकलांग के लिए बने विशेष स्कूलों के साथ वर्चुअल मीटिंग् और लोगों को समझाने और सशक्त बनाने का काम किया।इस साइकिलिंग प्रोजेक्ट का नेतृत्व एशियन पैरा साइक्लिंग चैंपियनशिप के ब्रॉन्ज़ विजेता हरिंदर सिंह ने किया।एशियन गेम्स ट्रैक साइकिलिंग ब्रॉन्ज़ विजेता गुरलाल सिंह भी टीम में थे। इन दोनों ने बॉर्डर पर देश की रक्षा करते हुए अपने पैर खो दिए थे।
अब ख़ास तौर पर तान्या की बात करते हैं। मध्य प्रदेश के राजगढ़ जिले के बियोरा कस्बे में रहने वाली तान्या ने देहरादून से पेट्रोलियम मैनेजमेंट में मास्टर्स किया है। यूनिवर्सिटी और स्टेट स्तर पर टेबल टेनिस और खो-खो खेल चुकी हैं।अब पेशे से एक रिसर्च एनालिस्ट हैं। देहरादून में एमबीए के दौरान, एक कार एक्सीडेंट में, अपना बायां पैर खोने वाली तान्या लगभग 6 महीने बिस्तर पर रहीं। तान्या को देहरादून से इंदौर भेज दिया जहाँ दो सर्जरी की गईं। कोई भी जिंदा रहने की गारंटी नहीं दे रहा था। इसके बाद दिल्ली भेज दिया जहाँ एक और सर्जरी हुई। दुर्घटना में एक पैर खोने के बाद, तान्या आदित्य मेहता फाउंडेशन से जुड़ीं और एक पैर से साइकिल चलाना शुरू कर दिया। साइकिल चलाने के दौरान कई बार पैरों से खून निकलता था। सबसे पहले 100 किमी साइकिल चलाई जिसमें वह टॉप 10 में थीं।
इस प्रोजेक्ट के दौरान तान्या डागा के साथ तो रास्ते में एक बड़ी दुर्घटना हुई। उनके लिए उनके पिता ही सबसे बड़ी प्रेरणा थे और तभी वे पैरा साइकलिंग में आईं। प्रोजेक्ट के दौरान उनके पिता आलोक डागा का देहांत हो गया। जब खबर आई तो वे बंगलुरू में थीं-18 दिसंबर को। उस समय 1999 वर्ल्ड कप के बीच सचिन तेंदुलकर के पिता के देहांत की घटना उन्हें याद आई। उसी से प्रेरणा लेकर वे भी घर लौटीं और अधूरा सफर फिर से शुरू कर दिया क्योंकि पिता का सपना था कि वे मिशन पूरा करें।19 दिसंबर को, तान्या बियोरा पहुंची और 22 दिसंबर को फिर से साइकिल पर निकल पड़ीं।
तान्या यह कारनामा करने वाली देश की पहली महिला पैरा-साइकलिस्ट बन गई हैं। उनका सपना है – “मैं पैरा साइक्लिस्ट के लिए काम करती रहूंगी और जागरूकता फैलाऊंगी कि कोई भी जीवन में कुछ भी हासिल कर सकता है।” उन्हें यात्रा करना और साइकिल चलाना बहुत पसंद है।
– चरनपाल सिंह सोबती
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