
खिलाड़ी में कोचिंग की चाह और सही राह की मौजूदगी दोनों जरूरी
क्या आपने ध्यान दिया कि भारत में बड़े खेलों में से आम तौर पर सिर्फ क्रिकेटर ही ऑफिशियल तौर पर रिटायर होने की घोषणा करते हैं । कई क्रिकेटर तो ये भी नहीं करते और अन्य दूसरे खेलों के खिलाड़ियों की तरह लगातार टीम से निकाले जाना अपने आप रिटायर होने में बदल जाता है। जो रिटायर होते हैं उनमें से ज्यादातर आम तौर पर एक बात जरूर कहते हैं। क्या ? ये कि जो इस खेल से मिला उसी को लौटाना चाहता हूँ। क्या वे वास्तव में ऐसा करते हैं या कर पाते हैं ? जो सीखा उसी को लौटाने का सबसे आसान मतलब है कोचिंग। कितने कोच मिल जाते हैं ऐसे या कितने ज्यादा कमाई वाले अन्य तरीके छोड़ कर पसीना बहाने वाली कोचिंग को हाथ में लेते हैं?
हर पुराना क्रिकेटर अजीत वाडेकर , कपिल देव ,अनिल कुंबले या रवि शास्त्री नहीं हो सकता कि कोचिंग के किसी ख़ास अनुभव के बिना सीधे मैन इन ब्लू का हैड कोच बन जाए। अगर आगे हैड कोच की इस जिम्मेदारी पर चंद्रकांत पंडित या लालचंद राजपूत की नज़र है तो ये दोनों उसके लिए मेहनत कर रहे हैं , एक के बाद एक कोचिंग कॉन्ट्रेक्ट और नई टीम के साथ मेहनत इन्हें तैयार कर रही है। रणजी ट्रॉफी के आने वाले सीजन के लिए वसीम जाफर , अविष्कार साल्वी और टीनू योहनन जैसे , कुछ समय पहले तक खेल रहे , खिलाड़ियों का नाम सामने आना इस बात का सबूत है कि ये जो सीखा उसे लौटाने के लिए तैयार हैं।
क्रिकेट में तो फिर भी सम्मान जनक नज़ारा है। हॉकी को ही लें – कितने पुराने खिलाड़ी इस समय कोच हैं ?भारत ने एक से एक बेहतरीन खिलाड़ी दिए। ये बेहतरीन खिलाड़ी बाद में कोच क्यों नहीं बने ?भारत के हॉकी खिलाड़ियों का भारत से बाहर कोचिंग देना तो दूर , भारत में कोचिंग देना कितना हो रहा है? भारत के 1980 में आखिरी ओलंपिक मैडल जीतने के बाद से एमके कौशिक , राजिंदर सिंह सीनियर ,वी भास्करन और हरेंद्र सिंह के अतिरिक्त अन्य और कोई बड़ा कोच क्यों नहीं बना ? इसके लिए जहाँ एक और चाह की कमी जिम्मेदार है तो वहीं उन्हें कोच बनाने के लिए सही राह की कमी भी जिम्मेदार है। कोच बनने का मतलब है आगे भी खेल में आ रहे बदलाव, उसके नए स्वरूप और तकनीकी बदलाव से जुड़े रहना। ये सही सिस्टम के बिना संभव नहीं।
इसलिए हॉकी इंडिया का इंटरनेशनल हॉकी फेडरेशन की मदद से कोचिंग सर्टिफिकेशन का सिलसिला एक ताऱीफवाली कोशिश है। नतीजा – पुराने खिलाडियों में कोच बनने की जो चाह दिखाई दे रही है वह हैरान करने वाली है।कोविड 19 के चलते तुषार खांडकर ,दीपक ठाकुर ,प्रभजोत सिंह ,समीर दाद ,विक्रम कांथ , देवेश चौहान , शिवेंद्र सिंह ,भारत छेत्री ,गुरबाज सिंह, गिरीश पिंपले ,संगी चानू और हेलेन मैरी उन 32 पुरुष और 23 महिला खिलाड़ियों में हैं जिन्होंने ये ऑनलाइन सर्टिफ़िकेट कोर्स किया। नतीजा – ये कोचिंग के लिए तैयार हैं। इसके लिए जितनी तारीफ इन खिलाड़ियों की होनी चाहिए उतनी ही हॉकी इंडिया की कोशिश की।
-चरनपाल सिंह सोबती